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Aarti Sangrah

आरती संग्रह

पूजन में जो भी त्रुटि/ न्युनता रह जाती है, आरती से उसकी पूर्ति होती है। पूजा के अंत में हम सभी उस पुजन के प्रधान देवता की आरती करते हैं। आरती पूजन का एक मह्त्वपूर्ण भाग है! आरती से इष्टदेवता को प्रसन्न किया जाता है। इसमें इष्टदेव को दीपक दिखाने के साथ उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है। यह एक देवता के गुणों की प्रशंसा गीत है। आरती आम तौर पर एक पूजा, अनुष्ठान या भजन सत्र के अंत में किया जाता है। यह पूजा समारोह के एक भाग के रूप में गाया जाता है। सामान्यतया एक से लेकर 108 बत्तीयों से आरती की जाती है । इसके अतिरिक्त कपूर से भी आरती होती है। कुमकुम, अगर, कपूर धूप और चन्दन, अथवा रुई और घी की बत्तियाँ बनाकर शंख, घंटा, धडियाल, मृदंग आदि वाद्ययन्त्र बजाते हुये भगवान जी की आरती करनी चाहिए।

आरती को लेकर हमारे 'स्कंदपुराण' में भी कहा गया है- “मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् पूजनं हरेः । सर्वे संपूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे।।“ अर्थात् – पूजन मंत्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन आरती कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है। आरती करने का ही नहीं, आरती में सम्मिलित होकर उसे देखने वा ग्रहण करने का भी बड़ा पुण्य होता है। जो धूप और आरती को देखता है और दोनों हाथों से आरती लेता है, उसके समस्त पापों का शमन होता है और भगवान् विष्णु के परमपद को प्राप्त होता है।

आरती श्री गणेश जी की

ओम जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।

माता जा की पार्वती, पिता महादेवा ॥ जय गणेश देवा…

एकदन्त दयावन्त चार भुजाधारी

माथे पर तिलक सोहे मूस की सवारी ।।

अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।

बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।।

गणपति स्तुति

जय गणनायक सिद्धि विनायक, मंगल दायक भाग्य विधाता !

हो तुम ही सब के सुभ दायक, कष्ट हरो हे भाग्य विधाता !!

रिद्धि और सिद्धि के स्वामी तुम्ही हो, पिता शुभ लाभ के हो शुभ दाता,

छोड़ के गोद मा गौरी की आओ तुम्हे आज भक्त तुम्हारा बुलाता !!2!!

आरती श्री शिव जी

ओम जय शिव ओंकारा भोले जय शिव ओंकारा,

ब्रह्मा- विष्णु- सदाशिव, भोले भोलेनाथ महाशिव!

अर्द्धांगी धारा ! ॐ हर हर महादेव....

एकानन- चतुरानन- पंचानन राजे स्वामी पंचानन राजे,

हंसानन- गरुड़ासन वृषवाहन साजे!! ॐ हर हर महादेव…

दो भुज चार चतुर्भुज, दश भुज अति सोहे भोले दश भुज अति सोहे,

तीनों रुप निरखता, त्रिभुवन जन मोहे!! ॐ हर हर महादेव....

अक्षमाला वनमाला, रुण्डमाला धारी शिव रुण्डमाला धारी,

चन्दन मृग मद सोहे, भोले शुभकारी!! ॐ हर हर महादेव....

श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघम्बर अंगे बाबा बाघम्बर अंगे,

सनकादिक, ब्रह्मादिक, भक्तादिक संगे!! ॐ हर हर महादेव....

कर में श्वेत कमंडल चक्र त्रिशूल धरता,

जग करता दुख हरता, जग पालन करता!! ॐ हर हर महादेव....

ब्रह्मा- विष्णु- सदाशिव जानत अविवेका,

प्रणवाक्षर के मध्य मे ,ये तीनों एका!! ॐ हर हर महादेव....

त्रिगुण स्वामि जी की आरती जो कोई नर गावे स्वामी प्रेम सहित गावे,

कहत शिवानन्द स्वामी, मन वांछित फ़ल पावै!! ॐ हर हर महादेव....

कुञ्जबिहारी जी कि आरती

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।

गले में बैजन्ती माला, बजावैं मुरली मधुर बाला॥

कान में कुंडल झलकाता, नंद के आनंद नन्दलाला ।

आरती कुंजबिहारी की …।

गगन सम अंग कान्ति काली, राधिका चमक रही आली, लतन में ठाढ़े बनमाली!

भ्रमर-सी अलक, कस्तुरी तिलक, चंद्र-सी झलक, ललित छबि श्यामा प्यारी की।

आरती कुंजबिहारी की …।

कनकमय मोर मुकुट बिलसैं, देवता दरसन को तरसैं, गगन से सुमन राशि बरसैं !

बजै मुरचंग मधुर मृदंग, ग्वालिनी संग-अतुल रति गोपकुमारी की।

आरती कुंजबिहारी की …।

जहां से प्रगट भई गंगा, कलुष कलिहारिणी श्री गंगा, स्मरण से होत मोहभंगा !

बसी शिव शीश, जटा के बीच, हरै अघ-कीच चरण छवि श्री बनवारी की।

आरती कुंजबिहारी की …।

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही बृंदावन बेनू,चहुं दिशि गोपी ग्वाल धेनु !

हंसत मृदुमन्द चांदनी चंद, कटत भवफन्द टेर सुनु दीन भिखारी की।

आरती कुंजबिहारी की …।

श्री सरस्वती जी की आरती

ओम जय सरस्वती माता , मैया जय जय सरस्वती माता |

सद्गुण वैभव शालिनी ,त्रिभुवन विख्याता॥

ओम जय सरस्वती माता.....

चंद्रवदनि पदमासिनी , घुति मंगलकारी मैया द्युति मंगलकारी!

सोहें हंस सवारी, अतुल तेजधारी ॥

ओम जय सरस्वती माता.....

बायेँ कर में वीणा ,दायें कर माला मैया दाये कर माला,

शीश मुकुट मणि सोहें , गल मोतियन माला ॥

ओम जय सरस्वती माता.....

तेरी शरण जो आयें ,उनका उद्धार किया,

पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥

ओम जय सरस्वती माता.....

विद्या ज्ञान प्रदायिनी , ज्ञान प्रकाश भरो मैया ग्यान प्रकाश भरो,

मोह और अज्ञान-तिमिर का जग से नाश करो ॥

ओम जय सरस्वती माता.....

धुप ,दीप फल मेवा माँ स्वीकार करो,

ज्ञानचक्षु दे माता , भव से पार करो ॥

ओम जय सरस्वती माता.....

माँ सरस्वती जी की आरती जो कोई जन गावें,

हितकारी, सुखकारी हितकारी सुखकारी ग्यान भक्ती पावें ॥

ओम जय सरस्वती माता.....

ओम जय सरस्वती माता , हे सरस्वती माता |

सदगुण वैभव शालिनी ,त्रिभुवन विख्याता॥

ओम जय सरस्वती माता.....

श्री सरस्वती प्रार्थना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृताया

वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभि र्देवैः सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥

(अर्थात- विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा शोभायमान है, जिन्होंने सफेद कमलों के आसन को ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश आदि देवताओं द्वारा जो सदा से पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर करने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥ )

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं,

वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम !

हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम,

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥

अर्थात् - शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥

आरती श्री हनुमान जी की

आरती कीजै हनुमंत लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।

जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।

अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतन के प्रभु सदा सहाई।

दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुध लाए।

लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।

लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि संजीवन प्राण उबारे।

पैठि पताल तोरि जम कारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।

बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।

सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।

कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।

लंक विध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।

जो हनुमान जी की आरती गावै। बसि बैकुंठ परमपद पावै।

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।

लक्ष्मी जी की आरती

जय जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

तुम को निशि- दिन सेवत, हर विष्णु विधाता….

ॐ जय लक्ष्मी माता…।।

उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता

सूर्य चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता

ॐ जय लक्ष्मी माता…।।

दुर्गा रूप निरंजनि, सुख सम्पति दाता

जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धि धन पाता

ॐ जय लक्ष्मी माता…।।

तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता

कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भव निधि की त्राता

ॐ जय लक्ष्मी माता…।।

जिस घर तुम रहती सब सद्‍गुण आता

सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता

ॐ जय लक्ष्मी माता…।।

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता

खान पान का वैभव, सब तुमसे आता

ॐ जय लक्ष्मी माता…।।

शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता

रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता

ॐ जय लक्ष्मी माता…।।

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई नर गाता

उर आनंद समाता, पाप उतर जाता ॐ जय लक्ष्मी माता…।।

आरती श्री विष्णु जी की

ओम जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा।

भक्तन के प्रतिपालक, दीनन दुख हरणा।। ओम जय लक्ष्मी रमणा …

चार वेद गुण गावत, ध्‍यान पुराण धरें।

ब्रह्मादिक शिव शारद, स्तुति नित्य करें।। ओम जय लक्ष्मी रमणा …

लक्ष्मीपति, कमलापति, गरूड़ासन स्वामी।

शेष शयन तुम करते, प्रभु अन्तरयामी।। ओम जय लक्ष्मी रमणा …

मात-पिता हो जग के, सुर नर मुनि करते सेवा।

धूप, दीप, तुलसीदल, धरें भोग मेवा।। ओम जय लक्ष्मी रमणा …

रत्नमुकुट सिर सौहे, बैजन्ती माला।

पीताम्बर तन शोभित, नील वरण आला।। ओम जय लक्ष्मी रमणा …

शंख-चक्र कर सौहे मुद मंगलकारी।

दास प्रभु की विनती सुन लो हितकारी।। ओम जय लक्ष्मी रमणा …

श्री रामचन्द्रजी की आरती

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं ।

नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं ।।

कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील नीरद सुन्दरं ।

पट पीत मानहु तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ।।

भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनं ।

रघुनंद आंनदकंद कौशलचंद दशरथ नंदनं ।

सिर मुकुट कूंडल तिलक चारु उदारु अंग विभुषणं ।

आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर दूषणं ।।

इति वदित तुलसीदास शंकर शेष मुनिमन रंजनं ।

मम ह्रदय कुंज निवास कुरु, कमदि खल दल गंजनं ।।

मनु जाहि राचिहु मिलहि सो बरु सहज सुंदर शावरो !

करूणा निधान सुजान शील सनेह जानत राउरो !!

यहि भांति गौरि अशीष सुनु सिय सहित हिय हरषित अली !

तुलसी भवानिहि पूजि पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली !!

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।

आरती श्री रामायण जी की

आरती श्री रामायण जी की । कीरति कलित ललित सिय पी की ।।

गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद । बाल्मीकि बिग्यान बिसारद ।।

शुक सनकादिक शेष अरु शारद । बरनि पवनसुत कीरति नीकी ।।1

आरती श्री रामायण जी की........।।

गावत बेद पुरान अष्टदस । छओं शास्त्र सब ग्रंथन को रस ।।

मुनि जन धन संतन को सरबस । सार अंश सम्मत सब ही की ।।2

आरती श्री रामायण जी की........।।

गावत संतत शंभु भवानी । अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी ।।

ब्यास आदि कबि बर्ज बखानी । काग भुशुंडि गरुड़ के ही की ।।3

आरती श्री रामायण जी की........।।

कलिमल हरनि बिषय रस फीकी । सुभग सिंगार भगति जुबती की ।।

दलनि रोग भव मूरि अमी की । तात मातु सब बिधि तुलसी की ।।4

आरती श्री रामायण जी की........।।

श्री संतोषी माता जी की आरती

ओम् जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता।

अपने सेवक जन की, सुख सम्पति दाता ।। ओम जय सन्तोषी माता....

सुन्दर चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हो।

हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो ।। ओम जय सन्तोषी माता....

गेरू लाल छटा छबि, बदन कमल सोहे।

मंद हंसत करुणामयी, त्रिभुवन जन मोहे ।। ओम जय सन्तोषी माता....

स्वर्ण सिंहासन बैठी चंवर दुरे प्यारे।

धूप- दीप- मधु- मेवा, भोज धरे न्यारे।। ओम जय सन्तोषी माता....

गुड़ अरु चना परम प्रिय, माँ ता में संतोष कियो।

संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो।। ओम जय सन्तोषी माता....

शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही।

भक्त मंडली छाई, कथा सुनत मोही।। ओम जय सन्तोषी माता....

मंदिर जग मग ज्योती, मंगल ध्वनि छाई।

बिनय करें हम सेवक, चरनन सिर नाई।। ओम जय सन्तोषी माता....

भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै।

जो मन बसे हमारे, इच्छित फल दीजै।। ओम जय सन्तोषी माता....

दुखी दरिद्री रोगी, संकट मुक्त किए।

बहु धन-धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए।। ओम जय सन्तोषी माता....

ध्यान धरे जो तेरा, मन वांछित फल पायो।

पूजा कथा श्रवण कर, घर घर आनन्द छायो।। ओम जय सन्तोषी माता....

चरण गहे की लज्जा, रखियो जगदम्बे।

संकट तू ही निवारे, दयामयी अम्बे।। ओम जय सन्तोषी माता....

माँ सन्तोषी जी की आरती जो कोई नर गावे।

रिद्धि सिद्धि सुख सम्पति, जी भर के पावे।। ओम जय सन्तोषी माता....

श्री शीतला माता जी की आरती

जय-जय शीतला माता, ओम जय शीतला माता !

आदि ज्योति महारानी, सब फल की दाता !! ओम जय शीतला माता...

रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भाता !

ऋद्धी- सिद्धी चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता !! ओम जय शीतला माता...

विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता !

वेद पुराण बखानत, पार नहीं पाता !! ओम जय शीतला माता...

इन्द्र मृदंग बजावत, चन्द्र वीणा हाथा !

सूरज ताल बजावत, नारद मुनि गाता !! ओम जय शीतला माता...

घंटा ध्वनि शहनाई, बाजै मन भाता !

करै भक्त जन आरति, लखि-लखि हरहाता !! ओम जय शीतला माता...

ब्रह्म रूप वरदानी, तु तीन काल ज्ञाता !

भक्तन को सुख देती, तू ही मातु पिता भ्राता !! ओम जय शीतला माता...

जो भी ध्यान लगावैं, प्रेम भक्ति पाता !

सकल मनोरथ पावे, भवनिधि से तर जाता !! ओम जय शीतला माता...

रोग-दोष से पीड़ित, जो कोई शरण तेरी आता !

कोढ़ी पावे सुकाया, अन्ध नेत्र पाता !! ओम जय शीतला माता...

बांझ पुत्र को पावे, सब दारिद कट जाता !

तुमको भजै जो नाहीं, वो सिर धुनि पछताता !! ओम जय शीतला माता...

शीतल करती जननी, तुही है जग त्राता !

विपति- व्याधि विनाशक , तू सब की घाता !! ओम जय शीतला माता...

दास अमित कर जोड़े, वो सुन मेरी माता !

भक्ति आपनी दीजै, मुझे और न कुछ भाता !! ओम जय शीतला माता...

श्री सत्यनारायण जी की आरती

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा, जय जय लक्ष्मी रमणा ।

श्री सत्यनारायण स्वामी, जनपातक हरणा ॥ ओम जय लक्ष्मी... ॥

रत्न जड़ित सिंहासन, अद्भुत छवि राजे ।

नारद करत नीराजन, घंटा ध्वनि बाजे ॥ ओम जय लक्ष्मी... ॥

प्रभु प्रकट भए कलिकारण, द्विज को दरस दियो ।

बूढ़ो ब्राह्मण बनकर, कंचन भवन कियो ॥ ओम जय लक्ष्मी... ॥

दुर्बल भील कठारो, तिन पर कृपा करी ।

चंद्रचूड़ इक राजा, जिसकी विपति हरी ॥ ओम जय लक्ष्मी... ॥

वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्ही ।

सो फल भोग्यो प्रभु जी, फिर स्तुति किन्हीं ॥ ओम जय लक्ष्मी... ॥

भाव-भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धर्‌यो ।

श्रद्धा धारण किन्ही, तिनको काज सरयो ॥ ओम जय लक्ष्मी... ॥

गोप-ग्वाल संग राजा, बन में भक्ति करी ।

मन इच्छित फल दीन्हा, दीन दयालु हरि ॥ ओम जय लक्ष्मी... ॥

चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा ।

धूप-दीप-तुलसीदल से, राजी सत्यदेवा ॥ ओम जय लक्ष्मी... ॥

श्री सत्यनारायण जी की आरती, जो कोई जन गावे ।

ऋषि-सिद्धि सुख-संपत्ति सहज भाव पावे ॥ ओम जय लक्ष्मी... ॥

श्री वैष्णों देवी जी की आरती

हे मात मेरी, हे मात मेरी-2,

कैसी यह देर लगाई है दुर्गे !। हे मात मेरी... 2 !!

भवसागर में गिरा पड़ा हूँ, काम आदि से घिरा हुआ हूँ ।

मोह जाल में फंसा पड़ा हूँ । न मुझ में बल है न मुझ में बुद्धि,

न मुझ में भक्ति न मुझमें शक्ति । शरण तुम्हारी आन पड़ा हूँ । !! हे मात मेरी... 2 !!

न कोई मेरा कुटुम्ब साथी, ना मेरा है ये शरीर साथी ।

आप ही उबारो पकड़ के बाँहें !। हे मात मेरी... 2 !!

तेरे चरण कमल की नांव बनाकर, मैं पार हुंगा ख़ुशी मनाकर ।

सदा ही तेरी स्तुति गाऊँ, सदा तेरा ही स्वरूप ध्याऊँ ।

नित-प्रति तेरे गुणों को गाऊँ !। हे मात मेरी... 2 !!

न मैं किसी का न कोई मेरा, चारों तरफ है घोर अन्धेरा ।

पकड़ के ज्योति दिखा दो रास्ता !। हे मात मेरी... 2 !!

शरण पड़े है हम तुम्हारी, करो ये नैया पार हमारी ।

कैसी यह देर लगाई है दुर्गे !। हे मात मेरी... 2 !!

श्री कालीमाता की आरती

मंगल की सेवा सुन मेरी देवा ,हाथ जोड तेरे द्वार खडे।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेट धरे !!

सुन जगदम्बे कर न विलम्बे, संतन के भडांर भरे।

सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जै काली कल्याण करे ।।

माँ बुद्धि विधाता तू जग माता, मेरा कारज सिद्ध करे।

तेरे चरण कमल का लिया आसरा, शरण तुम्हारी आन पडे !!

जब-जब भीड पडी भक्तन पर, तब-तब आय के आप सहाय करे ।

गुरुवार सकल जग मोहयो, माँ तरूणी रूप अनूप धरे !!

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव न्यारे, लिये भेट तेरे द्वार खडे !

शिखर सिहांसन बैठी मेरी माता, सिर सोने का छत्र फिरे !!

वार शनिचर कुंकुम बरणो, जब लकड पर हुकुम करे ।

खड्ग-खप्पर-त्रिशुल हाथ में लेकर, रक्त बीज को भस्म करे !!

शुम्भ निशुम्भ को पल मे मारे, महिषासुर संहार करें ।

आदि वारी हे आदि भवानी , अपने जन का कष्ट हरे ।।

क्रोधित होकर दनव मारे, चण्डमुण्ड सब चूर करे !

माँ तुम जब दया रूप हो, पल मे सकंट दूर करे !!

सौम्य स्वरूप धरो मेरी माता, भक्तों की अर्ज कबूल करे ।

अपरम्पार है महिमा तेरी , सब गुण कौन बखान करे !!

सिंहपीठ पर चढी भवानी, अटल भवन मे राज्य करे !

दर्शन पावे मंगल गावे ,साधक गण तेरी भेट धरे ।।

ब्रह्मा वेद पढे तेरे द्वारे, शिव शंकर हरि ध्यान धरे !

इंद्रादिक तेरी करे आरती, चॅवर कुबेर ढुलाय रहे !!

जय जगजननी हे मातु भवानी , अटल भवन मे राज्य करे ।

मंगल की सेवा सुन..........................जै काली कल्याण करे ।।

श्री खाटू श्याम जी की आरती

खाटू जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।

खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे।

ॐ जय श्री श्याम हरे..

रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे।

तन केसरिया बागो, कुंडल श्रवण पड़े।

ॐ जय श्री श्याम हरे..

गल फूलो की माला, सर पर मुकुट धरे।

खेवत धूप अग्नि पर दीपक ज्योति जले।!

ॐ जय श्री श्याम हरे..

मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे।

सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे।!

ॐ जय श्री श्याम हरे..

झांझ कटोरा औ घडियावल, शंख मृदंग घुरे।

भक्त आरती गावत , जय-जयकार करे।

ॐ जय श्री श्याम हरे..

जो ध्यावे फल पावे, सब कष्टों से उबरे।

सेवक जन निज मुख से, बाबा श्याम-श्याम उचरे।

ॐ जय श्री श्याम हरे..

श्री खाटू श्याम जी की आरती, जो कोई नर गावे।

कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे।

ॐ जय श्री श्याम हरे..

 

खाटू जय श्री श्याम हरे, बोलो जय श्री श्याम हरे।

निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे।

ॐ जय श्री श्याम हरे.. !!

तुलसी माता की आरती

जय-जय तुलसा माता, मैया जय तुलसा माता !

सब जग की सुख दाता, सबकी वर दाता

जय जय तुलसी माता ।।

सब योगों से ऊपर, सब रोगों से ऊपर

रज से रक्षा करके भव निधि की त्राता

जय जय तुलसी माता।।

हे बटु पुत्री श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या

जो जन तुमको सेवे, सो नर तर जाता

जय जय तुलसी माता ।।

श्री हरि के शीश में शोभित, त्रिभुवन से वन्दित !

पतित जनो की तारिणी, तुम हो विख्याता !!

ओम जय जय तुलसी माता ।।

आरती श्री बृहस्पति देवता जी की

सनातन धर्म में बृहस्पति देव को सभी देवी-देवताओं का गुरु माना जाता है। बृहस्पति देव की पूजा साधना करने से मनुष्य का जीवन सुखी होता है। सम्पूर्ण भारत देश में गुरुवार के दिन व्रत रखने का विधान है। इस व्रत में मुख्य रूप से केले के जड़ में बृहस्पति भगवान (विष्णु जी) की पूजा की जाती है तथा खाने में पीला भोजन ग्रहण किया जाता है। इस दिन भक्तगण पीले वस्त्र धारण करते हैं तथा नमक क सेवन नही करते हैं ! बृहस्पति देव की पूजा साधना में निम्न आरती का प्रयोग किया जाता है।

ओम जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा ।

छिन- छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥ ओम जय बृहस्पति देवा...!!

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।

जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।

सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥ ओम जय बृहस्पति देवा...!!

तन-मन-धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।

प्रभू प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े ॥

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।

पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥ ओम जय बृहस्पति देवा...!!

सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।

विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ॥

जो कोई आरती तेरी, भाव सहित गावे ।

जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥ ओम जय बृहस्पति देवा...!!

श्री भैरव जी की आरती

ओम जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।

जय काली और श्री गौरा कृतसेवा ।।

तुम पापी उद्धारक दुख सिन्धु तारक ।

भक्तों के सुखकारक भीषण वपु धारक ।! ओम जय भैरव देवा...!!

वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी ।

महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी !!

तुम बिन भगवन सेवा, सफल नहीं होवे ।

चतुर्वतिका दीपक दर्शन दुःख खोवे !! ओम जय भैरव देवा...!!

तेल चटकि दधि मिश्रित माषवली तेरी ।

कृपा कीजिये भैरव, करिये नहीं देरी !!

पाँव में घुंघरू बाजत, डमरू डमकावत ।

बटुकनाथ बन बालक, जन मन हरषावत !! ओम जय भैरव देवा...!!

भैरवनाथ जी की आरती जो कोई नर गावे ।

कहे ‘ अमितनंद‘ वह नर मन वांछित फल पावे !!

ओम जय भैरव देवा स्वामी जय भैरव देवा !

जय काली और श्री गौरा कृतसेवा ।।